शांगरी-ला डायलॉग सुरक्षा सम्मेलन में इस बार चीन नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोप के बीच तनाव चर्चा का केंद्र बन गया। अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने अपने भाषण में चीन को "तत्काल खतरा" बताया लेकिन साथ ही यूरोपीय देशों से कहा कि वे अपनी सैन्य ताकत यूरोप पर ही केंद्रित रखें। उनका कहना था कि अमेरिका इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाएगा, इसलिए यूरोप को यूरोपीय सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
भारत-पाकिस्तान के जनरल आमने-सामने लेकिन चुपचाप
सम्मेलन में एक और खास बात रही भारत और पाकिस्तान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों की मौजूदगी, जो हाल ही में 4 दिन की झड़पों के बाद 10 मई को संघर्षविराम पर पहुंचे थे। दोनों देशों के अधिकारी पूरे सम्मान के साथ मौजूद थे, लेकिन वे एक-दूसरे से दूरी बनाकर चलते रहे।
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यूरोप बोला – हम एशिया में भी रहेंगे
अमेरिका के सुझावों को लेकर यूरोप के कई देश सहमत नहीं दिखे। यूरोपीय संघ की प्रमुख काजा कैलास ने कहा – "यूरोप और एशिया की सुरक्षा आपस में जुड़ी हुई हैं। अगर चीन की चिंता है, तो रूस भी उतना ही बड़ा खतरा है।" उन्होंने चीन द्वारा रूस को मिल रही मदद और रूस-उत्तर कोरिया के सैनिक समझौते का भी जिक्र किया।
फ्रांस ने दिखाई एशिया में अपनी ताकत
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि फ्रांस एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भी एक ताकत है। उन्होंने फ्रांस की न्यू कैलेडोनिया और फ्रेंच पोलिनेशिया जैसी उपस्थिति और वहाँ तैनात 8,000 सैनिकों का हवाला दिया। मैक्रों ने कहा – "हम अमेरिका या चीन नहीं हैं और किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहते। यूरोप और एशिया का साझा रास्ता चाहिए।"
ब्रिटेन और यूरोप की मजबूत एशियाई मौजूदगी
इस महीने एक ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कैरियर सिंगापुर आ रहा है, जो 2017 में घोषित योजना का हिस्सा है। AUKUS समझौते के तहत ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं भी और नजदीक आई हैं। सिंगापुर के 200 पायलट फ्रांस में ट्रेनिंग लेते हैं, ब्रिटेन के पास ब्रुनेई में ट्रेनिंग कैंप और 1,200 गुरखा सैनिक हैं।
एशिया में यूरोपीय हथियार कंपनियों की पकड़
लंदन स्थित IISS संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय कंपनियां जैसे एयरबस, थेल्स, नेवल ग्रुप, डच डेमन, और स्वीडन की साब (Saab) अब भी एशिया में मजबूत हैं। साब थाईलैंड को लड़ाकू विमान बेचने के करीब है, जो अमेरिका के F-16 को पीछे छोड़ सकता है।
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