अमेरिका और भारत बीते एक-डेढ़ दशक में हर स्तर पर एक दूसरे के निकट आए हैं। इसी दरम्यान अमेरिका के सामाजिक और राजनीतिक हलकों में भारतीयों का दबदबा भी खासा बढ़ा। अगर हम सत्ता प्रतिष्ठानों के स्तर पर बात करें तो बीते 10 साल से भारत में नरेन्द्र मोदी (भाजपा) की हुकूमत है जबकि अमेरिका में इस दरम्यान तीन राष्ट्रपति का शासन रहा। बराक ओबामा से लेकर ट्रम्प और फिर जो बाइडन से होते हुए दोबारा ट्रम्प के हाथों में देश की बागडोर है। पार्टी के हिसाब से डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन ने बारी-बारी इस एक दशक को साझा किया है। दोनों पार्टियों की नीतियों जो भी रहीं लेकिन दोनों देश सामाजिक, सामरिक, सहयोग, परस्पर मेलजोल के लिहाज से भी करीब आते रहे हैं। एक-दूसरे के पास आने के इस क्रम में कभी कुछ लम्हे या हालात ऐसे भी रहे जब कुछ समय के लिए सियासी स्तर पर दोनों ओर से शिथिलता देखी गई। अलबत्ता वह शिथिलता अल्पकालिक रही। कई बार अमेरिका-भारत के बीच तल्खी या खटास का कारण पाकिस्तान बना। भारत से दोस्ती के दावे के साथ पाकिस्तान से अमेरिका के रिश्ते बार-बार भारत के राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में व्यावहारिक दोहरेपन के चलते चर्चा का सबब बने हैं। आंशिक रूप से कुछ ऐसा ही अब देखने में आ रहा है। खास तौर से पिछले डेढ़-पौने दो महीने से या कहें कि 10 मई के बाद से।
दरअसल, भारत की कश्मीर घाटी में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले (पहलगाम) और उसमें मारे गए 26 लोगों की प्रतिक्रिया स्वरूप भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत आतंकवादियों के खिलाफ पाकिस्तान में जो कार्रवाई की उसके चलते दोनों दक्षिण एशियाई देशों में सशस्त्र संघर्ष शुरू हो गया था। कोई चार-पांच दिन चले इस संघर्ष में (6 मई की रात से) दोनों देशों के सीमांत इलाके में खासा नुकसान हुआ और सैकड़ों लोग भी मारे गए। इसी बीच दुनिया को भारत-पाकिस्तान में परमाणु जंग की आशंकाएं दिखाई दीं। खास तौर से पाकिस्तान की ओर से। लेकिन 10 मई को अचानक भारत-पाकिस्तान में युद्धविराम हो गया। युद्धविराम तक तो ठीक था क्योंकि दोनों देशों के लोगों के साथ ही दुनिया ने भी राहत की सांस ली, लेकिन सियासत यहीं से शुरू हो गई। युद्धविराम भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ और इसका ऐलान अमेरिका ने कर दिया। साथ ही राष्ट्रपति ट्रम्प ने दावा किया कि उनके प्रयासों के चलते यह .युद्धविराम हुआ। वहीं, भारत ने कहा कि युद्धविराम दोनों पड़ोसियों की सहमति से हुआ, इसमें अमेरिका या राष्ट्रपति ट्रम्प की कोई भूमिका नहीं रही। जबकि राष्ट्रपति ट्रम्प लगातार युद्धविराम का श्रेय लेते रहे। हां, पाकिस्तान ने इसका श्रेय राष्ट्रपति ट्रम्प को अवश्य दिया। यह एक मुद्दा रहा। तल्खी का दूसरा सबब भारत-पाकिस्तान को एक मेज पर लाकर मध्यस्थता करने का ट्रम्प का आग्रह भी रहा। लेकिन द्विपक्षीय मामले में मध्यस्थता को लेकर भारत का हमेशा से इनकार रहा है। अहम बात यह है कि अमेरिका भारत के इस रुख से लंबे समय से वाकिफ रहा है। लेकिन फिर भी...
इतने पर भी 14 जून को अमेरिका में होने वाली सैन्य परेड में पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर को बुलाने की खबरें उड़ गईं। खबरें तो गलत साबित हुईं लेकिन मुनीर की व्हाइट हाउस में मेजबानी करके राष्ट्रपति ट्रम्प ने कम से कम भारत में तो सबको चौंका दिया। इस बीच (पहलगाम आतंकी हमले के बाद से) दुनिया में बहुत कुछ घटित हुआ है। इजराइल-ईरान के बीच 12 दिन चली जंग और फिर युद्धविराम मीडिया की सुर्खियों में हैं। इस जंग में भी युद्धविराम कराने का दावा श्रीमान ट्रम्प ने किया है। इधर, अमेरिका-भारत के बीच दो माह से चीजें शांत पड़ी हैं। भारत में, शायद, ठगा सा महसूस करने जैसी कैफियत है।
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