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आतंकवाद : युद्ध से बड़ा सवाल

खुले तौर पर तो सब आतंकवाद की खिलाफत करते हैं किंतु यदि आतंकवाद को समर्थन नहीं होता तो 9/11, 26/11, हाल ही में पहलगाम और इन सबसे पहले कनिष्क बम कांड न हुआ होता।

सांकेतिक तस्वीर / AI

बेशक, विडंबना इसी को कहते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली के साथ ही अरब-ईरान जैसे 33 मुल्कों की यात्रा के बाद आतंकवाद के खिलाफ समर्थन पाकर भारतीय सांसदों का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल स्वदेश लौट आया है। आतंकवाद के खिलाफ और ऑपरेशन सिंदूर के एक हिस्से के रूप में भारतीय सांसदों का शिष्टमंडल सात समूहों के रूप में दुनिया के तमाम देशों में गया और यात्रा के दौरान अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने अपने देश का रुख रखा और पड़ोसी पाकिस्तान की हरकतों से अवगत कराया। सप्रमाण। सबको बताया कि ऑपरेशन सिंदूर की जरूरत क्यों पड़ी, उससे क्या हासिल हुआ, इस तरह के अभियान की जरूरत भारत ही नहीं दुनिया के उन तमाम देशों को है जो आतंकवाद का दंश झेल चुके हैं या झेल रहे हैं और आज विश्व को शांति की आवश्यकता अभूतपूर्व तरीके से सबसे अधिक है। तो विडंबना यहां यही है कि दुनिया के तमाम देश आतंकवाद के खिलाफ हैं, सबने इसके विरोध में आवाज भी बुलंद की है लेकिन यह वैश्विक चुनौती न केवल मौजूद है, बल्कि अदृश्य समर्थन पाकर अपनी जड़ें जमाए हुए है। यह चुनौती मानवता के खिलाफ अपने खतरनाक मंसूबे समय-समय पर जाहिर करती रही है। उत्तर भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य की पहलगाम घाटी इसका हालिया उदाहरण है। ऐसे में सवाल यह है कि अगर सारे बड़े मुल्क आतंकवाद के खिलाफ हैं तो कोई तो है जो इसे समर्थन दे रहा है। खुले तौर पर नहीं। खुले तौर पर तो सब आतंकवाद की खिलाफत करते हैं। किंतु यदि आतंकवाद को समर्थन नहीं होता तो 9/11, 26/11, हाल ही में पहलगाम और इन सबसे पहले कनिष्क बम कांड न हुआ होता।

कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच खटास, टकराव और सीधे युद्धों का इतिहास रहा है। दक्षिण एशिया के इन दो पड़ोसी मुल्कों के बीच बरसों से आतंकवाद को लेकर असहजता बनी रही है। कभी एक रहे देश के इन दो हिस्सों के बीच जब-जब टकराव बढ़ता है तो  दुनिया चिंतित हो उठती है क्योंकि दोनों मुल्क परमाणु संपन्न हैं। भारत पहले प्रहार न करने की नीति पर रहा है लेकिन पाकिस्तान का इस तरह का कोई स्टैंड नहीं है। पाकिस्तान के सियासी, सामाजिक और आर्थिक हालात बहुत बुरे हैं और उसका सारा गुजारा कर्जे पर चलता है। लेकिन यहां भी एक विडंबना है कि जो कर्जा उसे अमेरिका जैसे देशों से मिलता रहा है उसका एक हिस्सा वह आतंकी गतिविधियों को पोषित करने पर करता है। ऐसा भारत का दावा या आरोप है और वह इसके सुबूत कई बार दे चुका है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान को फंडिंग करना प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आतंकवाद को बढ़ावा देना जैसा ही है। इसीलिए जब पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को कर्ज देने का ऐलान किया तो भारत ने उसका विरोध किया। बावजूद इसके पाकिस्तान को कर्ज की किस्तें मिलना शुरू हो गई हैं। हाल ही में एशियाई विकास बैंक ने भी पाकिस्तान को कई अरब डॉलर ऋण की घोषणा की है। भारत ने इसका भी विरोध किया है और अपने प्रतिकार का तर्क दोहराया है। भारत का तो यह भी कहना है अगर पाकिस्तान कर्जे से अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करता तो उसे बार-बार आईएमएफ या एडीबी के सामने हाथ न फैलाना पड़ता। बहरहाल, कुल जमा बात यह है कि जब तक आतंकवाद को समर्थन बंद नहीं होगा, यह खत्म नहीं होगा। बल्कि जो इसे समर्थन देगा यह उसको भी नहीं छोड़ेगा। खुद पाकिस्तान इसकी मिसाल है। सबको सोचना होगा कि युद्ध तो फिर भी दो देशों के बीच होता है लेकिन आतंकवाद पूरी दुनिया का दुश्मन है।    

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