अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आने वाले सामान पर 25 प्रतिशत आयकर (शुल्क) लगाने की घोषणा की है। यह फ़ैसला दोनों देशों के बीच लम्बे समय से चली आ रही बातचीत के टूटने के बाद लिया गया, जिसमें अमेरिका भारत से खेती से जुड़े बाज़ार को खोलने की ज़ोरदार माँग कर रहा था। लेकिन भारत ने कृत्रिम रूप से बदली गई फसलें (जेनेटिक फसलें), दूध और दूध से बने पदार्थ, तथा जैव ईंधन जैसे मुद्दों पर झुकने से मना कर दिया।
भारत का विरोध क्यों?
भारत ने साफ कहा है कि अमेरिका की मक्का, सोयाबीन और गेहूं जैसी फसलें कृत्रिम रूप से बदली गई हैं, जिन्हें स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक माना जाता है। भारत में इस तरह की फसलों के आने पर कानूनी रोक है। इसी तरह, अमेरिका के दूध उत्पाद ऐसे पशुओं से आते हैं जिन्हें मांस का आहार दिया जाता है। भारत में अधिकांश लोग शाकाहारी हैं और धार्मिक भावनाओं के कारण ऐसे उत्पादों को अस्वीकार करते हैं।
खेती का महत्व
भारत में खेती देश की कुल कमाई का भले ही केवल 16 प्रतिशत हिस्सा हो, लेकिन यह आधी से ज़्यादा आबादी की रोज़ी-रोटी है। छोटे और भूमिहीन किसानों के लिए गाय-भैंस और दूध का धंधा मौसम की मार में भी जीवन का सहारा बनता है। पिछले वर्षों में जब सरकार ने कुछ कृषि कानून लाने की कोशिश की थी, तब किसानों के विरोध ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। ऐसे में अमेरिका से सस्ता सामान आने से किसान नाराज़ हो सकते हैं।
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जैव ईंधन पर विवाद
भारत अपने ईंधन में 20 प्रतिशत तक देसी एथनॉल मिलाने का लक्ष्य पूरा कर चुका है, जिससे गन्ना और मक्का उगाने वाले किसानों को बड़ा लाभ मिला है। अमेरिका से सस्ता एथनॉल आने पर देसी किसान और कारखाने दोनों घाटे में आ सकते हैं। बिहार जैसे राज्यों में जहां जल्दी ही चुनाव होने हैं, वहां यह मुद्दा राजनीतिक रूप से भारी असर डाल सकता है।
गहराता व्यापार विवाद
भारत को डर है कि अगर एक बार अमेरिका के आगे झुका गया, तो अन्य देश भी खेती का बाज़ार खोलने का दबाव डालेंगे। यह भारत की खाद्य सुरक्षा और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरा होगा।
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