भारत की अर्थव्यवस्था ने एक बार फिर गति पकड़ी है। रॉयटर्स द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि जनवरी से मार्च 2025 की तिमाही में देश की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर 6.7% रही, जो इससे पिछली तिमाही में 6.2% थी। इस सर्वेक्षण में कुल 56 अर्थशास्त्रियों ने भाग लिया, जिसमें अनुमानों की सीमा 5.8% से 7.5% तक रही।
ग्रामीण भारत की मजबूत भूमिका
IDFC फर्स्ट बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता ने कहा, "हम ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में सुधार के संकेत देख रहे हैं, खासकर बेहतर फसल उत्पादन और महंगाई में थोड़ी नरमी के कारण।" सिटी बैंक के विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि गतिविधियों की मजबूती से ग्रामीण खपत में सुधार हो रहा है, जबकि शहरी मांग अभी भी कमजोर बनी हुई है।
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RBI से ब्याज दर में कटौती की उम्मीद
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से जून में लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद जताई जा रही है, ताकि मांग को और मजबूती दी जा सके। स्टैंडर्ड चार्टर्ड की अर्थशास्त्री अनुभूति सहाय ने कहा कि यह ग्रोथ सुधार मुख्य रूप से कम सब्सिडी भुगतान और टैक्स से मिले सकारात्मक प्रभाव की वजह से है, न कि वास्तविक आर्थिक गतिविधियों की मजबूती के कारण। GVA यानी ग्रॉस वैल्यू एडेड, जो कि ज्यादा स्थिर माना जाता है, वह सिर्फ 6.4% रही — जो बताता है कि सुधार सतही हो सकता है।
निजी निवेश और शहरी मांग बनी चुनौती
सोसाइटी जनरल के कुनाल कुंडू ने कहा, "वास्तविक सुधार अभी दूर है। ग्रामीण मांग थोड़ी बढ़ी है, लेकिन असली मजदूरी अब भी स्थिर है। शहरी मांग कमजोर बनी हुई है।" यस बैंक के इंद्रनील पान ने कहा कि जब तक निजी निवेश और उपभोक्ता विश्वास में सुधार नहीं होता, सिर्फ ब्याज दरों में कटौती से विकास को गति नहीं मिलेगी।
वैश्विक अनिश्चितता बनी चुनौती
अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि अमेरिका की व्यापार नीतियों में अस्थिरता भारत के लिए आगे की राह मुश्किल बना सकती है। पिछले महीने रॉयटर्स के एक अन्य पोल में यह सामने आया कि अमेरिकी टैरिफ ने कारोबारी भावनाओं को नुकसान पहुंचाया है।
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