भारतवंशी सुरेखा मूर्ति-फेहर की कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है जो कभी गंभीर बीमारी से जूझे हैं। बचपन में जीवनरक्षक इलाज पाने वाली सुरेखाआज उन्हीं मरीजों की देखभाल कर रही हैं—जो कभी खुद उनकी तरह थे।
दो साल की उम्र में सुरेखा को एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकीमिया (Acute Lymphoblastic Leukemia) नामक रक्त कैंसर हो गया था। उनकी सबसे पहली यादें अस्पताल, बालों का झड़ना और अपने पिता डॉ. गोपाल मूर्ति के साथ टीवी देखना हैं। डॉ. मूर्ति उस समय अमेरिका के प्रसिद्ध सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटल (St. Jude Children’s Research Hospital) में साइंटिफिक इमेजिंग डिपार्टमेंट के डायरेक्टर थे।
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