भारत के राज्य बिहार में चुनाव आयोग (ECI) के मतदाता सूची में संशोधन के फैसले के बीच प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है। आयोग का यह फैसला तब आया है, जब विधानसभा चुनाव में कम ही समय बचा है। ऐसे में आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं यह पीछे से NRC को लागू करने का प्रयास तो नहीं? हालांकि भारतीय चुनाव आयोग ने अपने बयान में कहा है कि विदेशी प्रवासियों का मतदाता सूची में अवैध रूप से शामिल ना किया जाए, इसके लिए यह संशोधन किया जा रहा है।
बिहार के सभी संभावित मतदाताओं को 25 जुलाई तक नागरिकता का प्रमाण देना होगा। पंजीकरण में सुधार के लिए बहुत कम लोगों के पास दस्तावेज होने जरूरी हैं। हलांकि मतदाता सूची में यह सुधार पूरे देश में लागू होने जा रहा है। ऐसे में आशंका व्यक्त की जा रही है कि इससे बड़ी संख्या में मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो जाएंगे।
इस बीच भारत में विपक्षी सांसदों ने सत्तारूढ़ दल बीजेपी की केंद्रीय सरकर को निशाने पर लिया। उनका मानना है कि इसका सबसे ज्यादा असर अल्पसंख्यकों पर पड़ेगा, जिनमें मुसलमान और दलित समुदाय भी शामिल हैं। प्रमुख मुस्लिम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कि बिहार में चुनाव आयोग के फैसले से बड़े पैमाने पर मताधिकार छिन जाएगा। ओवैसी ने कहा, "आपसे (मतदाताओं) ऐसे दस्तावेज दिखाने के लिए कहा जा रहा है जो बहुत कम लोगों के पास है।...इससे बड़े पैमाने पर मताधिकार छिन जाएगा।"
चुनाव आयोग ने क्या कहा?
हालांकि ऐसे तर्कों को पीछे कुछ कारण जरूर हो सकते हैं, लेकिन इस फैसले को लेकर सीआई के ताजा कदम की पड़ताल जरूरी है। दरअसल, मतदाता सूची संशोधन के तहत नागरिकता का प्रमाण मांगे जाने को लेकर एक बयान में ECI कहा, " मतदाता सूची में अवैध रूप से विदेशी अवैध प्रवासियों का नाम शामिल ना हो इससे बचने के लिए "गहन संशोधन" जरूरी था।
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्य लंबे समय से दावा करते रहे हैं कि पड़ोसी देश बांग्लादेश से बिना नागरिकता के दस्तावेज वाले मुस्लिम प्रवासियों ने धोखाधड़ी से भारत की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराया है।
भारतीय चुनाव आयोग के निर्देश
दो तिहाई वोटर्स के प्रभावित होने की आशंका
बता दें कि बिहार आबादी के मामले में तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। दावा किया जा रहा है ईसीआई के इस फैसले से इस राज्य में एक तिहाई से अधिक मतदाता प्रभावित होंगे। इसके अलावा इस फैसले का अनुपालन सत्तारूढ़ दल बीजेपी के लिए भी कड़ी चुनौती है। क्योंकि स्टेट की बात करें तो यहां भाजपा गठबंधन के साथ सरकार में शामिल है।
हालांकि बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल ने अन्य दलों और कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर चुनाव आयोग को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है।अदालत में दायर याचिका में कहा गया है, "इसका इस्तेमाल मतदाता सूची में अस्पष्ट संशोधनों को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है, जो मुस्लिम, दलित और गरीब (भारतीय) प्रवासी समुदायों को असमान रूप से टारगेट करने के लिए है।"
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दरअसल, बायोमेट्रिक-लिंक्ड पहचान पत्र यानी आधार कार्ड चुनाव आयोग द्वारा स्वीकार्य प्रमाण के रूप में सूचीबद्ध दस्तावेज़ों में शामिल नहीं है। ऐसे में जिन दस्ताबेजों को पेश किया जा सकता है उनमें जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट और मैट्रिकुलेशन रिकॉर्ड शामिल हैं। ऐसे में सबसे अधिक निर्भरता मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट पर होगी, हालांकि यहां साझरता दर काफी कम है। ऐसे में गरीब, कम शिक्षित, अशिक्षित और अल्पसंख्यक सबसे अधिक प्रभावित होंगे।"
द इंडियन एक्सप्रेस अखबार में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, राज्य में केवल 35 प्रतिशत लोगों के पास ही ऐसा दस्तावेज है। वह ीं नई दिल्ली स्थित एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के जगदीप छोकर ने कहा, "बिहार में, जहां साक्षरता दर बहुत ज्यादा नहीं है, बहुत से लोगों के पास चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेज़ होने की संभावना नहीं है।"
वहीं राजनीतिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद योगेंद्र यादव ने कि यह अभियान भारतीय नागरिकों की सूची तैयार करने की पिछली योजना का "वास्तविक" कार्यान्वयन है। अब सभी को यह साबित करना होगा कि वे भारत के नागरिक हैं। एनआरसी बिल्कुल यही है, जो बैक डूर से लागू की जा रही है।
उन्होंने कहा, "केवल वे लोग जो विशेष रूप से अपना नाम दर्ज करवाना चाहते थे, उन्हें एक फॉर्म भरना पड़ता था। बाकी लोगों के लिए, कोई उनके घर आकर उनका नाम दर्ज करवा देता था। भारत में जिम्मेदारी कभी मतदाता की नहीं, बल्कि चुनाव आयोग के अधिकारियों की होती थी।"
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