International Booker Prize 2025: कुल 6 पुस्तकों को इस बार बुकर अवॉर्ड के लिए चुना गया। बुकर पुरस्कारों की लिस्ट में पुस्तक 'हार्ट लैंप' भी शामिल है, जो कन्नड भाषा में लिखी गई है। यह एक शॉर्ट स्टोरी है। पुस्तक की लेखिका बानू मुश्ताक हैं। दीपा भष्ठी ने बाद में इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है, जिन्हें लंदन के टेट मॉडर्न में हुए कार्यक्रम में अवॉर्ड मिला है।
लंदन के मशहूर जीबीपी 50,000 में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ किताब बन चुकी है। इससे पहले बानू मुश्ताक कई बार कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता भी रह चुकी हैं। बानू ने जिस संदीदगी से हार्ट लैंप को लिखा, उसी को ध्यान में रखते हुए दीपा भष्ठी इसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी किया। दरअसल, दीपा भष्ठी इस किताब के लिए अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय ट्रांसलेटर हैं।
बानू और दीपिका को 50,000 पाउंड का पुरस्कार
बानू मुश्ताक और दीपा भष्ठी ने मंगलवार को लंदन के टेट मॉडर्न में हुए कार्यक्रम में अवॉर्ड रिसीव किया। दोनों को 50,000 पाउंड (52.95 लाख रुपए) की पुरस्कार राशि भी मिली है, जो लेखक और ट्रांसलेटर के बीच बराबर-बराबर बांटी जाती है। मुश्ताक ने हार्ट लैंप किताब में दक्षिण भारत में पितृ सत्तात्मक समाज में रहने वाली मुस्लिम महिलाओं की कठिनाइयों को मार्मिक ढंग से दर्शाया है।
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मैक्स पोर्टर ने की दीपिका भष्ठी की प्रशंसा
बुकर पुरस्कार को लेकर गठित जूरी ने विभिन्न मानदंडों पर नामित पुस्तकों को परखा। पुरस्कार के निर्णायक मंडल के अध्यक्ष मैक्स पोर्ट ने एक बयान में कहा, " पुस्तक हार्ट लैंप अंग्रेजी पाठकों के लिए वास्तव में कुछ नया है। कन्नड़ भाषी जीवन से जुड़ी से जुड़ी इस कहानी को अंग्रेजी भाषा में समझ एक चुनौती पूर्ण कार्य था, जिसे बखूबी किया गया है।ये स्टोरी महिलाओं के जीवन, प्रजनन अधिकारों, आस्था, जाति, शक्ति और उत्पीड़न को विषय पर फोकस्ड हैं।"
कौन हैं बानू मुश्ताक?
हार्ट लैंप की लेखिका बानू मुश्ताक कर्नाटक की मशहूर कन्नड़ भाषा की राइटर हैं। इसके अलावा वे वकील व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। हार्ट लैंप के पहले भी उनकी कई रचनाएं प्रकाशित हुई है। बानू को लेखिका के अलावा महिला अधिकारों की वकालत करने और भेदभाव पर सवाल उठाने के उनके कानूनी काम के लिए भी जाना जाता है।
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बानू मुश्ताक का जीवन
बानू मुश्ताक कर्नाटक के एक छोटे से कस्बे में मुस्लिम इलाके में पली-बढ़ीं और अपने आसपास की अधिकांश लड़कियों की तरह उन्होंने भी स्कूल में उर्दू भाषा में क़ुरान का अध्ययन किया। उनके पिता सरकारी कर्मचारी रहे उनके पिता चाहते थे कि बानू मुश्ताक आम स्कूल में पढ़ें। जब वह आठ साल की थीं, तब उनके पिता ने उनका दाख़िला एक कॉन्वेंट स्कूल में करवाया जहां कन्नड़ भाषा में पढ़ाई होती थी। 26 साल की उम्र में अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी के एक साल बाद उनकी लघु कथा एक स्थानीय मैग्जीन में छपी। हालांकि उनका शुरुआती विवाहित जीवन संघर्षों और कलह वाला रहा।
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