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विशेषज्ञों ने चेताया- भारत का नया कर विधेयक गैर-निवासियों को दे सकता है बड़ी चोट

चूंकि विधेयक अभी समीक्षाधीन है इसलिए विशेषज्ञ सरकार से इन चिंताओं को दूर करने का आग्रह कर रहे हैं ताकि अनपेक्षित कर निहितार्थों को रोका जा सके और नई कर व्यवस्था में स्पष्टता सुनिश्चित की जा सके।

भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण। / Canva

कर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भारत के प्रस्तावित आयकर विधेयक मसौदे में ऐसी कई विसंगतियां हैं जो विशेष रूप से गैर-निवासियों के लिए अनपेक्षित कर परिणामों को जन्म दे सकती हैं। विधेयक, 2025 का उद्देश्य मौजूदा आयकर अधिनियम, 1961 को प्रतिस्थापित करना है। 

एक प्रमुख चिंता आगे लाए गए दीर्घकालिक पूंजीगत घाटे (LTCL) के उपचार की भी है। हालांकि, नए विधेयक में बचत खंड LTCL को 2026-27 कर वर्ष से शुरू होने वाले अल्पकालिक पूंजीगत लाभ (STCG) सहित सभी भविष्य के पूंजीगत लाभों के विरुद्ध सेट करने की अनुमति देता है।

निशीथ देसाई एसोसिएट्स के कर विशेषज्ञों का कहना है कि इससे करदाताओं को LTCL, जिस पर कम दर से कर लगाया जाता है, को STCG के विरुद्ध ऑफसेट करने की अनुमति मिल सकती है, जिस पर उच्च दर से कर लगाया जाता है। इससे सरकार को संभावित राजस्व हानि हो सकती है।

LTCL आमतौर पर स्टॉक और रियल एस्टेट जैसी परिसंपत्तियों की बिक्री से उत्पन्न होता है जबकि STCG अक्सर बॉन्ड और म्यूचुअल फंड जैसी छोटी अवधि की होल्डिंग से पैदा होता है। विशेषज्ञों ने कहा कि STCG की भरपाई के लिए LTCL को अनुमति देने से वास्तव में, STCG पर प्रभावी कर दर कम हो जाएगी, जिससे सरकारी राजस्व प्रभावित होगा।

प्रस्तावित बिल ट्रांसफर प्राइसिंग प्रावधानों में एसोसिएटेड एंटरप्राइजेज (AE) की परिभाषा में बदलाव का भी प्रस्ताव करता है। कर विशेषज्ञों ने कहा कि धारा 162(2) में संशोधित शब्दावली AE की परिभाषा को उसके मूल उद्देश्य से परे व्यापक बना सकती है और संभावित रूप से एक दूसरे में न्यूनतम शेयरधारिता वाले उद्यमों को संबंधित संस्थाओं के रूप में वर्गीकृत कर सकती है।

पारुल जैन, इप्सिता अग्रवाल और मोरवी चतुर्वेदी ने एक विस्तृत विश्लेषण में कहा कि यह बदलाव कर अधिकारियों को उन संस्थाओं के बीच लेन-देन पर अधिक जांच करने का मौका दे सकता है जिनका कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं हो सकता है। इससे अनुपालन बोझ बढ़ सकता है और विवाद हो सकते हैं।

AE वर्गीकरण हस्तांतरण मूल्य निर्धारण के लिए महत्वपूर्ण है जो संबंधित पक्षों के बीच लेनदेन को नियंत्रित करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे बाजार की कीमतों को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि एक व्यापक AE परिभाषा से कर जांच में वृद्धि हो सकती है। वहां भी जहां कर से बचने का जोखिम बहुत कम है। 

विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि बिल यह भी स्पष्ट नहीं करता कि 1961 अधिनियम के तहत जारी किए गए परिपत्र वैध रहेंगे या नहीं। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा जारी परिपत्र कर व्याख्या और अनुपालन पर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि निरंतरता सुनिश्चित करने वाले स्पष्ट प्रावधान के बिना, अनिश्चितता पैदा हो सकती है, जिससे मुकदमेबाजी का जोखिम बढ़ सकता है।

 विधेयक में गैर-निवासियों के लिए एक नई अनुमानित कर व्यवस्था भी पेश की गई है जो उन्हें भारत में कराधान के दायरे में ला सकती है। भले ही उनका देश में कोई स्थायी प्रतिष्ठान न हो। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि इससे कुछ मामलों में दोहरा कराधान हो सकता है। इसके अतिरिक्त कर कटौती प्रावधानों के एकीकरण से करदाताओं के लिए अपने दायित्वों को निर्धारित करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

चूंकि विधेयक अभी समीक्षाधीन है इसलिए विशेषज्ञ सरकार से इन चिंताओं को दूर करने का आग्रह कर रहे हैं ताकि अनपेक्षित कर निहितार्थों को रोका जा सके और नई कर व्यवस्था में स्पष्टता सुनिश्चित की जा सके।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आयकर विधेयक की जांच के लिए निचले सदन की 31 सदस्यीय चयन समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्षता भाजपा के बैजयंत पांडा कर रहे हैं और इसे अगले सत्र के पहले दिन तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। 

फरवरी में संसद में पेश किया गया आयकर विधेयक, 2025 आयकर अधिनियम, 1961 की भाषा और संरचना को सरल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस विधेयक में कर नीति में कोई बड़ा बदलाव और कर दरों में कोई संशोधन प्रस्तावित नहीं किया गया है। मौजूदा कानून को सरल बनाते हुए नए विधेयक में 47 की जगह 23 अध्याय होंगे और 819 धाराओं की जगह 536 धाराएं होंगी।
 

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