क्या आप यकीन करेंगे कि जब अमीन सयानी ने रेडियो सीलोन पर अपना ट्रेडमार्क काउंटडाउन कार्यक्रम शुरू किया था तो उन्हें प्रति सप्ताह केवल 25 रुपये (यूएस 0.30 डॉलर) का भुगतान किया गया था?
जी हां, यह सुनने में भले ही अविश्वसनीय लगता है पर सच सौ फीसदी है। इसकी पुष्टि खुद अमीन साहब ने की थी। लेकिन मामूली पारिश्रमिक के बावजूद वह खुश थे कि कम से कम उन्हें कुछ मेनताना तो मिल रहा था। इसलिए क्योंकि, जैसा कि उन्होंने प्रसार भारती को दिए एक साक्षात्कार में बताया था, रेडियो पर अपनी पहली वास्तविक नौकरी के लिए उन्हें स्वास्थ्यवर्धक पेय के एक टिन से अधिक कुछ नहीं मिला। और इसके एवज में एक सप्ताह के लिए रेडियो गायन प्रतियोगिता, कैडबरी की फुलवारी का प्रचार।
वह उस समय केवल 20 वर्ष के थे लेकिन युवावस्था में ही रेडियो के दिग्गज बन गए थे। सात साल की उम्र से ही वह अपने बड़े भाई हामिद के साथ 'चिपके' हुए थे। अमीन के बड़े भाई एक प्रसिद्ध ब्रॉडकास्टर थे और अमीन की रुचि से खुश होकर उन्होंने उन्हे स्टूडियो में कुछ रिकॉर्ड करने का सुझाव दिया। तब अमीन खुद को एक गायक के रूप में देखा करते थे। लेकिन जब बड़े भाई ने कुछ रिकॉर्ड करने को कहा तो उन्होंने तुरंत अपना पसंदीदा गीत सुना दिया। मगर जब वायर रिकॉर्डिंग अमीन को वापस सुनाई गई तो यह पहली बार था जब उन्होंने सच में अपनी आवाज सुनी और उन्हे उस आवाज से नफरत हुई।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि उनके भाई को लगा कि उनमें क्षमता है, किंतु एक गायक के रूप में नहीं। तब हामिद ने रेडियो नाटकों में बच्चों की भूमिकाओं के लिए छोटे भाई का नाम सुझाना शुरू कर दिया। अपने भाई और गुरु द्वारा तालीम पाये अमीन जल्द ही बच्चों के कार्यक्रमों और फिर रेडियो पर संगीत कार्यक्रमों की मेजबानी करने लगे।
जब रेडियो सीलोन से प्रस्ताव आया तो हामिद ने उनसे इसे स्वीकार करने का आग्रह किया। हालांकि तब तक अमीन ने केवल अंग्रेजी और गुजराती में स्कूली शिक्षा ली थी और अंग्रेजी में ही प्रसारण कर रहे थे। उर्दू, गुजराती और देवनागरी लिपि में प्रकाशित होने वाले पाक्षिक अखबार रहबर में अपनी मां की मदद करने के बाद वह हिंदी पढ़ना और लिखना जान गये थे और बोलते भी थे। हिंदी में अपनी तरह के इस पहले बॉलीवुड फिल्म संगीत कार्यक्रम को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए बताया कि पहले एपिसोड में श्रोताओं के लगभग 9,000 पत्र आए और यह संख्या प्रति सप्ताह 60,000-70,000 तक बढ़ती रही।
एक साल के बाद रेडियो स्टेशन ने प्रायोजकों के साथ निर्णय लिया कि चिट्ठियों की इस सुनामी को रोकने का एकमात्र तरीका यही है कि कार्यक्रम को हाल ही में रिलीज़ हुए हिंदी फिल्मी गानों की सप्ताह में एक बार 'हिट परेड' बना दिया जाए। इस तरह बिनाका गीतमाला 1952 में शुरू हुई और 1988 तक रेडियो सीलोन पर जारी रही। 1989 में यह ऑल इंडिया रेडियो नेटवर्क पर विविध भारती सेवा में स्थानांतरित हो गई और 1994 तक जारी रही। यह न केवल पूरे देश और भारतीय उपमहाद्वीप में बल्कि एशिया में भी लोगों की पसंद बनी। और जब नाम बदल गया यानी बिनाका गीतमाला से सिबाका गीतमाला और कोलगेट सिबाका संगीतमाला तब भी एक आवाज जो न बदली वह अमीन सयानी की थी।
इसके बाद तो दशकों तक रेडियो जॉकी उनकी नकल करते रहे लेकिन उनमें से किसी ने भी उनकी जितनी और उनके जैसी लोकप्रियता का आनंद नहीं लिया। 1976 से उन्होंने अमेरिका, कनाडा, न्यूजीलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, इस्वातिनी, मॉरीशस, फिजी और दक्षिण अफ्रीका में भारतीय रेडियो शो और विज्ञापनों को 'भेजना' शुरू किया। छह दशकों से अधिक के करियर में उन्होंने 53,000 रेडियो कार्यक्रमों और 19,000 स्पॉट और जिंगल्स का निर्माण किया और आवाज दी। उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ और वह प्रतिष्ठित 'हिंदी रत्न' विजेता भी थे।
अपनी लोकप्रियता के उसी दौर में टॉप रेटेड सितारों और फिल्म निर्माताओं से लेकर गीतकारों, संगीत निर्देशकों और गायकों तक किसी का भी इंटरव्यू लेना उनके लिए आसान रहा, सिवाय किशोर कुमार के। गीता दत्त, लता मंगेशकर और आशा भोंसले से लेकर तलत महमूद, मुकेश और मोहम्मद रफी तक सबके इंटरव्यू किये। रफी साहब तो खुद स्टूडियो आये। अलबत्ता अमीन के कॉलेज दोस्त किशोर कुमार ने उनसे आग्रह किया कि वे अंधेरी आएं और उन्हें एक शूट में रिकॉर्ड करें।
हालांकि जब वह एक भारी-भरकम टेप रिकॉर्डर के साथ अंधेरी पहुंचे तो गेट पर उनकी मुलाकात फिल्म के निर्माता से हुई जिन्होंने उनसे कहा कि किशोर कुमार उनके जाने के बाद ही आएंगे। क्रोधित और अपमानित अमीन ने अगले 18 वर्षों तक गायक से संपर्क नहीं किया। लेकिन आख़िरकार किशोर ही उनके पास आए।
किशोर कुमार 13 अक्टूबर, 1987 को अपने असामयिक निधन तक सबके दिलों पर राज करते रहे। अमीन सयानी 2014 तक सक्रिय थे। 20 फरवरी को 91 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। दुनिया भर से उन्हें श्रद्धांजलि आईं। इसलिए क्योंकि कभी दूसरा अमीन सयानी नहीं होगा।
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