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अमेरिका इस साल एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को भेजेगा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, गार्सेटी ने की पुष्टि

भारत में अमेरिकी दूत एरिक गार्सेटी ने इस साल के अंत तक एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजने की योजना की पुष्टि की है।

भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी मुम्बई में 22 मई को एक कार्यक्रम। / X/@USAmbIndia

भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने पुष्टि की है कि इस साल के आखिर तक अमेरिका एक भारतीय को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भेजेगा। आगामी 248वें अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में 22 मई को मुम्बई में आयोजित एक कार्यक्रम में गार्सेटी ने कहा कि हम इस वर्ष एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भेजने जा रहे हैं। 

गार्सेटी ने खुलासा किया कि पिछले साल जब भारत के प्रधानमंत्री मोदी अपनी राजकीय यात्रा पर अमेरिका आये थे तो हमने उनसे यह वादा किया था कि अगले साल तक हम यह काम कर लेंगे। इस लिहाज से हमारा मिशन ट्रैक पर है। 

अमेरिकी राजनयिक ने भारत के 'चंद्रयान 3' मिशन की भी सराहना की। चंद्रयान 2023 में चंद्रमा पर उतरा था और अमेरिका द्वारा इसी तरह के चंद्र मिशन की तुलना में बहुत कम लागत पर भारतीय मिशन पूरा हुआ था। 

परमाणु रिएक्टर विकसित करने के लिए अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत में दो साइटों - आंध्र प्रदेश में कोवड्डा और गुजरात में मीठी विरधी को अंतिम रूप दिया गया है। हालांकि,कंपनियों ने भारत के 2010 नागरिक दायित्व परमाणु क्षति अधिनियम को लेकर चिंता व्यक्त की है जो परमाणु दुर्घटनाओं से होने वाले नुकसान के मामलों में पीड़ितों को शीघ्र मुआवजा देने का वादा करता है।

लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के लिए समान हिस्सेदारी जरूरी
इस पर गार्सेटी ने कहा कि किसी भी लोकतंत्र में अल्पसंख्यक समूहों के लिए समान हिस्सेदारी होनी चाहिए। भारत में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार को लेकर चिंताओं पर एक सवाल का जवाब देते हुए अमेरिकी दूत ने कहा कि भारतीय 'अपने लोकतंत्र का ख्याल रखेंगे।'

हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट (जिसका शीर्षक था-स्ट्रेंजर्स इन देयर ओन लैंड: बीइंग मुस्लिम इन मोदीज इंडिया) में आरोप लगाया गया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "धर्मनिरपेक्ष ढांचे और मजबूत लोकतंत्र को खत्म कर दिया है जो लंबे समय से भारत को एक साथ रखता था"। इस संदर्भ में अमेरिकी दूत ने कहा कि मैं मोटे तौर पर यह भी कहूंगा कि विविधता, समानता, समावेश और पहुंच केवल चुनाव के दिन की चिंता नहीं होनी चाहिए। यह लोकतंत्र की एक दैनिक चर्या है।
 

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