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वुमन इन द ड्यून : ज्ञान और अज्ञान के बीच ग्राम्य जीवन से गुजरती एक जापानी फिल्म

शिक्षक को इंतजार रहता है गांव वालों के लौटने का। उन्हें पीने का पानी निकालने का तरीक़ा बताने का।

फिल्म का एस दृश्य / साभार

वुमन इन द ड्यून, एक जापानी फ़िल्म है। इसकी बेहतरीन सिनेमेटोग्राफ़ी, बैकग्राउंड स्कोर और पात्रों का अभिनय आपको रोमांच से भरते रहते हैं। 

बेहतरीन सिनेमा, सिनेमेटोग्राफ़ी, क्लोज़ अप शॉट, पात्रों का चयन आदि में कमाल के रहे आंद्रेई टारकोवस्की, इंगमार बर्गमान, सत्यजीत रे, वॉन कर वाई के बाद इस फ़िल्म के निर्देशक “हिरोसी टेसीगहारा” ने मेरा मन मोह लिया। इस फ़िल्म की एडिटिंग भी कमाल की है। किसी भी दृश्य को ज़रूरत से ज़्यादा खींचा नहीं गया है... चाहे ड्रमेटिक हो या लव मेकिंग। 

फ़िल्म की कहानी एक शिक्षक की है जिसे बालू में पाये जाने वाले कीड़ों में रुचि है। वह उन पर शोध कर रहा है। वहीं इसकी दूसरी पात्र एक महिला है जो सैंड ड्यून (रेत की टीले) में रहती है। ‘सैंड ड्यून’ बालू का टीला जो आम तौर पर समुद्र के किनारे बहती हवाओं से बनता है या रेगिस्तान में हवाओं द्वारा।

महिला अपने जीवन यापन के लिए बालू काट कर इस ड्यून से थोड़ी दूर बसे गांव के लोगों को देती है। जिसके बदले में गांव के लोग उसे कुछ वक्त का राशन-पानी देते हैं और इस तरह से उसका जीवन बसर होता रहता है। इस महिला का पति और बच्ची इसी बालू में दब कर मर गए थे लिहाजा अब वह अकेली है। बालू से घिरे घर में। ऐसे में कीड़ों की खोज में अपनी अंतिम बस को मिस कर देने वाले शिक्षक को गांव वाले रात को उस महिला के यहां ठहरने का आसरा देते हैं। गांव वाले जानते हैं कि वह महिला बहुत दिनों तक अकेले बालू से ढंके कुएंनुमा घर में नहीं रह सकती। फिर उन्हें बालू भी तो चाहिए था। 

शिक्षक बेचारा फंस चुका है एक जाल में। एकांत के जाल में… वह भागने की कोशिश करता है पर इस रेगिस्तान से निकल नहीं पाता। निराश होकर वह उस महिला से कहता है कि मैं फेल इसलिए हुआ क्योकि मुझे भूगोल का ज्ञान नहीं। पर मैं एक दिन ज़रूर सफल होऊंगा।

शिक्षक है, उसे ज्ञान है कि वह क्यों असफल हुआ। साथ ही वह कई तरीक़ों से महिला को भी समझाने की कोशिश करता है कि यह जीवन भी क्या कोई जीवन है ? उसे इससे निकलना चाहिए। 

इधर महिला जानती है कि उसका जीवन यही है। उसे शिक्षक से प्रेम नहीं फिर भी शरीर को शरीर की ज़रूरत है। शिक्षक भी भागने की तिड़कम के बीच प्रेम का स्वांग कर लेता है। महीनों भागने की जुगत लगाते -लगाते उसने मरू से पानी निकालने का तरीक़ा ढूंढ़ लिया। वह यह ख़बर महिला को दे इससे पहले दर्द में तड़प रही महिला दिखती है। वह प्रेग्नेट होती है पर उसकी प्रेग्नेसी आसान नहीं। 

'एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी' के लक्षण है। इस तरह की प्रेग्नेंसी में एग गर्भाशय से नहीं जुड़ता बल्कि वह फैलोपियन ट्यूब, एब्‍डोमिनल कैविटी या गर्भाशय की ग्रीवा से जाकर जुड़ जाता है। ऐसे में गांव वाले उसे उपचार के लिए ले जाते हैं और रह जाता है अकेला शिक्षक उस बालू के गढ़ वाले घर में। उसके पास अवसर होता है भागने का पर वह एक शिक्षक है। उसे इंतजार होता है गांव वालों के लौटने का। उन्हें पीने का पानी निकालने का तरीक़ा बताने का। और इस तरह से फ़िल्म ख़त्म होती है।

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