अमेरिका द्वारा चीनी ग्रेफाइट पर भारी टैरिफ लगाने के बाद भारतीय कंपनी एप्सिलॉन (Epsilon) ने जापान और दक्षिण कोरिया की बैटरी कंपनियों को सप्लाई के लिए करार पक्का करने की प्रक्रिया तेज कर दी है। कंपनी के प्रबंध निदेशक विक्रम हांडा का कहना है कि अगले 60 से 80 दिनों में नए कॉन्ट्रैक्ट्स फाइनल होने की पूरी संभावना है।
जुलाई 2025 में अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले ग्रेफाइट एनोड मैटेरियल्स पर 93.5% एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाई थी। इसके बाद अमेरिकी बैटरी निर्माता चीन पर निर्भरता कम करने और वैकल्पिक सप्लायर की तलाश में हैं।
ईवी बैटरियों में एनोड की अहमियत
एक इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी चार मुख्य हिस्सों से बनी होती है – एनोड, कैथोड, इलेक्ट्रोलाइट और सेपरेटर। इनमें से एनोड बैटरी की फास्ट-चार्जिंग और वाहन की रेंज तय करता है। अमेरिका को हर साल लगभग 5 लाख टन एनोड मैटेरियल्स की जरूरत होती है, जिसका बड़ा हिस्सा अब तक चीन से ही आता था। चीन दुनिया के 90% से ज्यादा ग्रेफाइट को रिफाइन करता है।
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अमेरिका और भारत में निवेश योजनाएं
एप्सिलॉन ने अक्टूबर 2023 में अमेरिका के नॉर्थ कैरोलाइना में 650 मिलियन डॉलर की लागत से फैक्ट्री लगाने का ऐलान किया था। यह प्लांट 30,000 टन एनोड मैटेरियल्स बनाने की क्षमता रखेगा और 2027 के मध्य तक चालू होने की उम्मीद है।
भारत में भी कंपनी कर्नाटक में 1.1 बिलियन डॉलर का निवेश कर 1 लाख टन की क्षमता वाला संयंत्र लगाने की योजना बना रही है। लेकिन यहां पर कंपनियों की दिलचस्पी फिलहाल कम है क्योंकि वे अब भी चीन से मिलने वाली कम कीमत वाली सप्लाई को तरजीह दे रही हैं।
हांडा का कहना है कि भारतीय कंपनियों को कम से कम 20% सप्लाई एप्सिलॉन से लेनी चाहिए, ताकि अगर चीन ने अचानक सप्लाई रोक दी, तो वैकल्पिक सप्लायर उपलब्ध रहे। उन्होंने चेतावनी दी कि कहीं यह हालात "रेयर अर्थ मेटल्स" जैसी स्थिति न बना दें, जिसमें भारत की निर्भरता पूरी तरह बाहरी स्रोतों पर रही।
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