निकट अतीत में रूस-यूक्रेन के बीच शुरू हुई जंग इजराइल-फिलिस्तीन के बीच सैन्य संघर्ष से होते हुए भारत-पाकिस्तान के बीच सीधे टकराव तक आ पहुंची है। बीती 22 अप्रैल को धरती के स्वर्ग कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 भारतीय और एक नेपाली नागरिक की जान गई, भारत की ओर से बड़ी कार्रवाई का ऐलान किया गया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने देश की सेना को पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने की खुली छूट दे दी है। वर्ष 1947 में आजादी के बाद से भारत-पाकिस्तान कई जंग लड़ चुके हैं। देश के तमाम राजनीतिक दल पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने को लेकर एकजुट हैं। पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी और निर्णायक कार्रवाई को लेकर भारतवासियों का ही खून नहीं खौल रहा, दुनिया के तमाम देश आतंकवाद के सफाये को लेकर लामबंद हैं। अमेरिका भी, जो खुद आतंकवाद का दंश झेल चुका है और जिसने अपने दुश्मन नंबर वन ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान की धरती पर जाकर मिट्टी में मिलाया था। सो, माहौल तनावपूर्ण है। पाकिस्तान सीमा से सटे इलाकों में भारत की तैयारियां भी किसी बड़े एक्शन की ओर इशारा कर रही हैं। हालांकि पाकिस्तान ने इस आतंकी हमले में शामिल होने से इनकार किया है और सिंधु जल समझौता रद्द होने के बाद इसके कड़वे नतीजा की बात कही है। इसी बीच दक्षिण एशिया के दोनों पड़ोसियों के बीच टकराव टालने को लेकर वैश्विक स्तर पर हलचल शुरू हो गई है। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने भारत-पाकिस्तान में टकराव टालने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। ऐसा अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का मानना बताया जाता है।
कुछ ही दिन पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने अपने एक बयान में कहा था कि भारत और पाकिस्तान सैकड़ों बरसों से परस्पर टकराव की स्थिति में हैं, और इस बार भी वे इस मामले से खुद ही निपट लेंगे। मगर अब स्थिति की गंभीरता को देखते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने स्थिति को और अधिक बिगड़ने से रोकने के लिए नई दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों से संपर्क करना शुरू कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से अलग-अलग फोन पर बात की और टकराव से बचने की जरूरत पर जोर दिया, जिसके दुखद परिणाम हो सकते हैं। इसमें दोराय नहीं कि अगर दोनों देशों के बीच जंग हुई तो इसका खामियाजा भारत-पाकिस्तान को ही भुगतना होगा। लेकिन यह भी तय है कि जंग के नतीजों से शेष दुनिया भी नहीं बच पाएगी।
निसंदेह रूप से पूरी दुनिया आतंकवाद से जूझ रही है लेकिन ऐसा क्यों होता है कि जिस देश पर हमला होता है फौरी प्रतिक्रियाओं के बाद सारे देश उससे ही धैर्य रखने का आग्रह-अनुरोध करने लगते हैं। जंग के नतीजों का हवाला देकर शांत रहने की अपील करते हैं। खून बहने के बाद जिस तरह पूरी दुनिया आतंकवाद और सैन्य टकराव रोकने के लिए आगे आती है उसी तरह आतंकी मुल्कों, लोगों और समूहों के खिलाफ एकजुट होकर कार्रवाई क्यों नहीं करती। इतने नुकसान के बाद भी क्या दुनिया मानवता के दुश्मनों को नहीं पहचानती। भारत समेत दुनिया के तमाम देशों ने जिन्हे आतंकवादी घोषित किया है, वे दूसरी धरती पर पनाह लेकर खून बहा ही रहे हैं। बेशक, अगर दुनिया के सबसे बड़े संकट से निजात पाना है तो अपने-अपने पूर्वाग्रह, स्वार्थ और सियासत को एक तरफ रखना होगा।
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