दक्षिण एशिया में पड़ोसी कट्टर दुश्मन भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई को अचानक हुए संघर्षविराम के बाद सीमा पर शांति है। भारतीय सेना ने 12 मई को कहा कि 'हाल के दिनों में पहली शांत रात' थी।
दोनों देशों के बीच चार दिनों तक चले मिसाइल, ड्रोन और तोपखाने के हमलों के बाद 10 मई को संघर्षविराम पर सहमति बनी थी। चार दिन के टकराव में कम से कम 60 लोग मारे गए और हजारों लोग पलायन कर गए।
वर्ष 1999 में परमाणु-सशस्त्र प्रतिद्वंद्वियों के बीच आखिरी खुले संघर्ष के बाद हालिया हिंसा सबसे हिंसा थी और इसने वैश्विक स्तर पर यह सोचकर थरथराहट पैदा कर दी थी कि यह पूर्ण युद्ध में बदल सकता है।
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प द्वारा सोशल मीडिया पर अप्रत्याशित रूप से इसकी घोषणा किए जाने के कुछ ही घंटों बाद दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर संघर्षविराम का उल्लंघन करने का आरोप लगाया, क्योंकि शुरुआती संदेह था।
भारतीय सेना ने कहा कि कश्मीर और अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे अन्य इलाकों में काफी हद तक रात शांतिपूर्ण रही। बयान में कहा गया कि हाल के दिनों में पहली बार शांतिपूर्ण रात होने के कारण कोई घटना नहीं हुई।
यह भारत द्वारा प्रशासित विभाजित कश्मीर के हिस्से के सीमावर्ती शहर पुंछ में गोलाबारी या अन्य हमले के बिना लगातार दूसरी रात थी। पुंछ नवीनतम संघर्ष में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक था, जहां कम से कम 12 निवासी मारे गए और अनुमानित 60,000 निवासियों में से अधिकांश अपने घरों से पलायन कर गये। 11 मई को लोग धीरे-धीरे शहर की ओर लौटने लगे। हालांकि कई लोग अभी भी चिंतित थे कि युद्धविराम लंबे समय तक नहीं चलेगा।
7 मई को सुबह होने से पहले ही व्यापक संघर्ष की ओर खतरनाक चक्र शुरू हो गया जब भारत ने मिसाइल हमले शुरू किए और कश्मीर के पाकिस्तानी हिस्से में 'आतंकवादी शिविरों' को नष्ट कर दिया। इससे पहले 22 अप्रैल को कश्मीर में पर्यटकों पर हमला हुआ था जिसमें 26 नागरिक मारे गए।
भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवादी हमले का समर्थन करने का आरोप लगाया लेकिन इस्लामाबाद ने इसमें शामिल होने से इनकार किया और भारी गोलाबारी के साथ हमलों का तुरंत जवाब दिया। पाकिस्तान ने पांच भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराने का दावा किया। इस पर नई दिल्ली ने कोई टिप्पणी नहीं की।
2019 के बाद से आतंकवादियों ने कश्मीर में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं क्योंकि तब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस क्षेत्र की सीमित स्वायत्तता को रद्द कर दिया और इसे नई दिल्ली के सीधे शासन के अधीन कर दिया था।
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