लैंग्वेज को लेकर दो बड़ी रिसर्च 5 फरवरी को 'नेचर' मैगजीन में छपी हैं। इसमें दावा किया गया है कि भारत की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित भाषाओं में से एक संस्कृत सहित 400 से अधिक दूसरी इंडो-यूरोपियन भाषाएं आज के रूस वाले इलाके के प्राचीन लोगों से जुड़ी हुई हैं। रिसर्च में दावा किया गया है कि काकेशस लोअर वोल्गा के लोग शायद पहले इंसान थे जिन्होंने इंडो-यूरोपियन भाषाएं बोली थीं। ये नई जानकारी दुनिया की 40% आबादी की भाषाओं के फैलाव के बारे में बताती है।
डीएनए के सबूतों से भाषा वैज्ञानिकों ने दावा किया कि करीब 6500 साल पहले ईनोलिथिक काल में इंडो-यूरोपियन भाषा बोलने वाले लोग वोल्गा नदी के निचले इलाके और उत्तरी काकेशस के पहाड़ी इलाकों में रहते थे। इस खोज से 'स्टेपी हाइपोथीसिस' की थ्योराी को मजबूती मिली है। ये थ्योरी कहती है कि शुरुआती इंडो-यूरोपियन भाषाएं (जिसमें संस्कृत भी शामिल है) यूरेशियन स्टेपी से निकलीं और फिर पूरे यूरोप और दक्षिण एशिया में फैल गईं।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्च एसोसिएट और इस स्टडी के मुख्य लेखकों में से एक इओसिफ लजारिडिस ने कहा, 'ये पहला मौका है जब हमारे पास सभी इंडो-यूरोपियन भाषाओं को जोड़ने वाली जेनेटिक तस्वीर है।'
रूस से भारत तक भाषाओं का सफर
भाषा वैज्ञानिकों ने बहुत पहले ही संस्कृत, ग्रीक और लैटिन भाषाओं में समानताएं देखी थीं। इनकी जड़ें एक ही पुरानी भाषा में ढूंढ़ी थीं। नई रिसर्च बताती है कि कैसे काकेशस लोअर वोल्गा के लोगों के वंशज याम्नाया लोग इन भाषाओं को फैलाने में अहम भूमिका निभाते थे। करीब 5000 साल पहले याम्नाया लोगों ने पूरे यूरेशिया में अपना साम्राज्य फैलाया। उन्होंने काले सागर और कैस्पियन सागर के इलाकों से लेकर पूर्व में मंगोलिया और पश्चिम में आयरलैंड तक अपनी अर्थव्यवस्था, यात्रा करने की क्षमता और अपनी भाषाओं का प्रभाव फैलाया।
इस स्टडी के दूसरे मुख्य लेखक डेविड एन्थोनी ने याम्नाया लोगों के प्रभाव पर जोर देते हुए कहा कि उन्होंने बैलों से खींचे जाने वाले गाड़ियों और घोड़ों पर पशुओं को पालने का काम सबसे पहले किया था। इससे उन्हें फैलने और आगे बढ़ने में बहुत फायदा हुआ। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में जेनेटिक्स के प्रोफेसर डेविड रीच ने कहा, 'इन्होंने यूरोप की आबादी को पूरी तरह बदल दिया। ब्रिटेन में तो कुछ ही दशकों में 90 प्रतिशत आबादी ही बदल गई।'
पिछले शोधों में याम्नाया लोगों के आनुवंशिक और भाषाई प्रभाव भारत में भी देखे गए हैं। ये उन अध्ययनों से मेल खाता है जो बताते हैं कि शुरुआती इंडो-यूरोपियन भाषाएं प्रवास के जरिए उपमहाद्वीप में पहुंची थीं। हालांकि, सटीक रास्ता अभी भी बहस का विषय है। लेकिन नए निष्कर्ष इस विचार को मजबूत करते हैं कि इंडो-यूरोपियन भाषाएं एक प्राचीन यूरेशियन स्टेपी आबादी से निकली हैं।
भाषाई और आनुवंशिक प्रमाण
यह अध्ययन कांस्य युग के दौरान तुर्की में बोली जाने वाली अनातोलियन भाषाओं से जुड़ी एक पुरानी पहेली को भी सुलझाता है। दूसरी इंडो-यूरोपियन भाषाओं के विपरीत अनातोलियन भाषाएं उन आबादियों द्वारा बोली जाती थीं जिनमें याम्नाया वंश नहीं था। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि एक और भी पुरानी आबादी काकेशस लोअर वोल्गा के लोग इंडो-यूरोपियन भाषाओं का वास्तविक स्रोत थे, जो याम्नाया से भी पहले थे।
यह खोज भाषाविदों, पुरातत्वविदों और आनुवंशिकीविदों के लिए एक बड़ी साझा उपलब्धि है, जो दुनिया के सबसे प्रभावशाली भाषा परिवारों में से एक के उद्गम और प्रसार की एक अधिक पूर्ण तस्वीर पेश करती है।
भारत के लिए जहां संस्कृत का गहरा धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है। यह खोज शुरुआती इंडो-यूरोपियन भाषाओं से इसके संबंधों की वैज्ञानिक पुष्टि प्रदान करती है। हालांकि संस्कृत भाषी वैदिक सभ्यता बहुत बाद में उभरी, लेकिन यह अध्ययन उस भाषा संबंधी सिद्धांत को मजबूत करता है जो इसे यूरेशियन स्टेपी से प्रवास से जोड़ता है।
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