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कमला हैरिस और अमेरिकी राजनीति में भारतवंशियों का भविष्य

कमला हैरिस ने 2020 के चुनाव में जिस तरह भारतीय अमेरिकी दाताओं और मतदाताओं को उत्साहित किया था, उससे लगता है कि 2024 में वह भारतीय अमेरिकियों में उत्साह की नई लहर पैदा कर सकती हैं। 

कमला हैरिस भारतीय मूल के अमेरिकियों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। / X @KamalaHarris

(शीतल कलंत्री/कार्तिक रामकृष्णन)

अमेरिका के इस साल के आम चुनाव देश की राजनीति में भारतीय मूल के लोगों के लिहाज से अभूतपूर्व साबित होने जा रहे हैं। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपना अभियान समाप्त करके कमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के हाथों में सौंप दी है। उधर, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के रनिंग मेट जेडी वेंस की पत्नी उषा वेंस की जड़ें भी भारत से जुड़ी हैं। कुछ समय पहले तक रिपब्लिकन प्राइमरी चुनाव के दौरान निक्की हेली और विवेक रामास्वामी भी दावेदारों में शामिल थे। यह अमेरिकी समाज में भारतीय-अमेरिकियों की बढ़ती उपस्थिति और राजनीतिक दबदबे का संकेत है।

अहम सरकारी पदों पर भारतीय-अमेरिकी लंबे समय से चुनकर आते रहे हैं। अमेरिका की वयस्क आबादी का भारतीय-अमेरिकियों का हिस्सा महज 0.6 प्रतिशत है, लेकिन प्रतिनिधि सभा में वे इसके लगभग दोगुना अनुपात में हैं। सैन फ्रांसिस्को की इंडियास्पोरा की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार में करीब 4.4 प्रतिशत वरिष्ठ पदों पर भारतीय मूल के अमेरिकी हैं।

अमेरिकी राजनीति में भारतीय-अमेरिकियों की सफलता की जड़ें दोनों देशों की साझा औपनिवेशिक विरासत में छिपी हैं। ब्रिटिश उपनिवेश के अधीन रहने की वजह से अंग्रेजी भारत की एक तरह से राष्ट्रीय भाषा बन चुकी है। अमेरिका में रहने वाले भारतीय प्रवासी बड़े पैमाने पर अंग्रेजी में शिक्षित हैं। भारत भले ही संसदीय लोकतंत्र है, लेकिन दोनों देशों के सरकार के मॉडल में भी कई समानताएं हैं। दोनों लोकतांत्रिक देश हैं और संविधान का मजबूती से पालन करते हैं। 

भारतीय अप्रवासी अमेरिका में सबसे तेजी से बढ़ते समूहों में से एक हैं। अमेरिका में भारतीय-अमेरिकियों की आबादी 1980 में जहां करीब चार लाख थी, वहीं 2020 में यह बढ़कर 44 लाख पहुंच चुकी है। यह अमेरिका की आबादी का लगभग 1.5 प्रतिशत है। इतना ही नहीं, भारतीय-अमेरिकी अब देश में सबसे बड़ा एकल-मूल एशियाई समूह हैं, जो चीनी अमेरिकियों से करीब 2.70 लाख अधिक हैं।

भारतीय-अमेरिकी देश के सबसे तेजी से बढ़ते मतदाता समूहों में से हैं। समुदाय के 21 लाख से अधिक लोग मतदान करने के योग्य हैं। पिछले चार साल में 2.35 लाख से अधिक को अमेरिकी नागरिकता मिल चुकी है। एएपीआई डेटा के अनुसार, 2020 में मतदान करने वाले एशियाई अमेरिकियों में भारतीय अमेरिकियों की सबसे अधिक 71 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। यह स्तर गैर-हिस्पैनिक श्वेत अमेरिकियों (71 प्रतिशत) के बराबर था, जो 2020 में सभी नस्लीय समूह में सबसे बड़ा था। 

भारतीय मूल के अमेरिकी वाशिंगटन राज्य में भी उभरती राजनीतिक ताकत हैं। अमेरिका की सभी काउंटियों में विदेशी मूल के निवासियों की दूसरी सबसे बड़ी संख्यात्मक वृद्धि किंग काउंटी में हुई है। वाशिंगटन राज्य की विदेशों में जन्मी आबादी में भारतीयों का दूसरा नंबर हैं। किंग काउंटी में भारतीय अप्रवासियों पहले नंबर पर हैं।

भारतीय अमेरिकियों ने वाशिंगटन राज्य की राजनीति में अच्छा प्रदर्शन किया है। भले ही वे राज्य की आबादी का महज 2 प्रतिशत और योग्य मतदाताओं का एक प्रतिशत हैं, प्रतिनिधि सभा में राज्य प्रतिनिधिमंडल में भारतीय अमेरिकियों का जलवा है। प्रमिला जयपाल 7वें कांग्रेस जिले का प्रतिनिधित्व करती हैं, वहीं राज्य सीनेट और सदन से सेनेटर मनका ढींगरा और प्रतिनिधि वंदना स्लेटर भारतीय प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वाशिंगटन डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख शास्ती कॉनराड भी दक्षिण एशिया के इस महत्वपूर्ण राज्य में नेता हैं।

फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि भारतीय अमेरिकी इस चुनाव में कैसे मतदान करेंगे। बाइडेन की नाम वापसी के बाद अगर हैरिस को नॉमिनेट किया जाता है तो जाहिर है, ये बड़ी उपलब्धि होगी। इस घटनाक्रम से पहले एएपीआई डेटा ने एशियाई अमेरिकी पंजीकृत मतदाताओं पर एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण जारी किया था। इसके मुताबिक, 65 प्रतिशत भारतीय अमेरिकियों ने कहा था कि 2020 में उन्होंने बाइडेन को वोट देंगे। लेकिन केवल 46 प्रतिशत ने ही कहा कि इस बार नवंबर में वह बाइडेन को वोट देने वाले हैं। यह गिरावट अर्थव्यवस्था संभालने और इजरायल-गाजा संकट के प्रति बाइडेन सरकार की नीतियों का नतीजा मानी जा सकती है।

हालांकि ये जरूरी नहीं है कि बाइडेन से असंतुष्ट भारतीय अमेरिकी ट्रम्प के सपोर्ट में खड़े हो जाएंगे। सर्वे में ट्रम्प का समर्थन करने वाले भारतीय अमेरिकियों का अनुपात 29 प्रतिशत (2020 के 28 प्रतिशत की तुलना में) लगभग स्थिर रहा है। बाकियों ने किसी अन्य उम्मीदवार (5 प्रतिशत) को वोट देने के संकेत दिए हैं। 14 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि वे अभी निश्चित नहीं है कि किसे वोट वोट देंगे। सवाल का जवाब देने से इनकार करने वालों की संख्या 5 प्रतिशत थी।

इससे जाहिर है कि डेमोक्रेट पार्टी सही उम्मीदवार का चुनाव करके भारतीय अमेरिकियों को अपने पाले में खींच सकती है। हैरिस ने 2020 के चुनाव में उपराष्ट्रपति पद की दावेदार रहते हुए जिस तरह भारतीय अमेरिकी दाताओं और मतदाताओं को उत्साहित किया था, उससे लगता है कि 2024 में उनके राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी बनने पर भारतीय अमेरिकियों में उत्साह की नई लहर पैदा हो जाएगी। 

यह भी संभव है कि हैरिस की वजह से वाशिंगटन राज्य में भारतीय अमेरिकियों की एक नई पीढ़ी चुनावी रेस में उतरने के लिए प्रेरित हो। वाशिंगटन में भारतीय प्रवासियों के अपेक्षाकृत हालिया आगमन का एक मतलब ये भी है कि उनकी नागरिकता की दर भारतीय अमेरिकियों के राष्ट्रीय औसत से कम है। यह क्रमशः 30 प्रतिशत और 45 प्रतिशत है। 

इस तरह कहा जा सकता है कि भले ही कमला हैरिस के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी वाशिंगटन में हजारों भारतीय अमेरिकी को अधिक जुड़ाव के लिए प्रेरित करे, लेकिन ये साफ है कि इसके परिणाम दशकों तक महसूस किए जाएंगे।

(कार्तिक रामकृष्णन एएपीआई डेटा के संस्थापक एवं कार्यकारी निदेशक हैं और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कले के शोधकर्ता हैं। शीतल कलंत्री सिएटल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ में कानून की प्रोफेसर, एसोसिएट डीन और राउंडग्लास इंडिया सेंटर की निदेशक हैं।)

यह लेख पहले द सिएटल टाइम्स में प्रकाशित हुआ था।
(इस लेख में व्यक्त विचार और राय लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे न्यू इंडिया की आधिकारिक नीति या स्थिति को प्रतिबिंबित करें)

 

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