उत्तर भारतीय राज्य राजस्थान के दो जिलों में शुरू की गई मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा की एक अनूठी पहल ने आदिवासी बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला दिए हैं। इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत बच्चों को उनकी स्थानीय भाषा में पढ़ाना शुरू किया गया, जिससे उनकी सीखने की क्षमता और आत्मविश्वास में बड़ा इज़ाफा देखा जा रहा है।
कल्याणपुर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले 5 से 6 साल के बच्चे, अब हिंदी के शब्दों की पहचान करने में सक्षम हो चुके हैं। पहले ये बच्चे हिंदी न समझ पाने के कारण चुप रहते थे, सवालों का जवाब नहीं दे पाते थे। लेकिन अब वे सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं और पढ़ाई में रुचि दिखा रहे हैं।
क्या कहते हैं शिक्षक
शिक्षिका जशोदा खोकारिया ने बताया, “जब मैंने शुरू में हिंदी में पढ़ाना शुरू किया, तो बच्चे घबराए हुए रहते थे। वे कुछ समझ ही नहीं पाते थे। लेकिन जब से हमने मातृभाषा में पढ़ाना शुरू किया, बच्चे खुलकर बोलने लगे हैं। अब एक भी बच्चा ऐसा नहीं है जो जवाब न दे पाए।”
मातृभाषा में शिक्षा ने बदली तस्वीर
इस पहल की शुरुआत राजस्थान सरकार, यूनिसेफ और एक स्थानीय एनजीओ के सहयोग से की गई। राजस्थान के नौ ग्रामीण जिलों में हुए सर्वे में सामने आया कि करीब 2.5 लाख बच्चे 31 अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, और इनमें से तीन-चौथाई बच्चे हिंदी समझने में असमर्थ हैं। इस चुनौती को देखते हुए, राज्य शिक्षा परिषद ने स्थानीय भाषाओं में शब्दकोश तैयार किए। बाद में इन्हें हिंदी और अंग्रेज़ी में अनुवादित कर कक्षाओं में उपयोग किया गया।
यह भी पढ़ें- ग्लोबल ग्लैमर में भारतीय टच, दुनिया भर में इसलिए छाए हैं ये नाम
राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) की निदेशक श्वेता फागेरिया बताती हैं,“शुरुआत में कई चुनौतियां थीं। शिक्षक इन भाषाओं में प्रशिक्षित नहीं थे। हमने पहले शब्दकोश तैयार किए, फिर शिक्षकों को सामग्री के साथ प्रशिक्षित किया।”
बच्चे अब कहानी भी सुनाने लगे हैं
कुवाड़ी निचला फला जैसे स्कूलों में बदलाव साफ़ दिखने लगा है। वागड़ी भाषा बोलने वाले बच्चे अब अपनी भाषा में शब्द पढ़ने और समझने लगे हैं। शिक्षिका लक्ष्मी कुमारी पटेल कहती हैं,“पहले बच्चे संकोच करते थे। अब वे बिना झिझक बात करते हैं, कहानियां सुनाते हैं और अपनी बात खुलकर रखते हैं।”
अभिभावक भी हो रहे हैं भागीदार
इस पहल का असर बच्चों तक ही सीमित नहीं है। अब अभिभावक भी बच्चों की पढ़ाई में भाग लेने लगे हैं, क्योंकि पढ़ाई उसी भाषा में हो रही है जिसे वे खुद बोलते हैं। 62 वर्षीय ललिता परमार कहती हैं, “पहले हम समझ नहीं पाते थे कि बच्चे क्या पढ़ रहे हैं। अब हम कहानियां सुना सकते हैं, शब्दों का अभ्यास करवा सकते हैं। बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी करेंगे, इससे पूरा परिवार आगे बढ़ेगा।”
शिक्षा में भाषा की भूमिका पर ध्यान
यूनिसेफ की विशेषज्ञ साधना पांडे ने कहा, “भारत बहुभाषी समाज है, और जब तक बच्चे की मातृभाषा में शिक्षा नहीं दी जाती, वह पूरी तरह से सीख नहीं सकता। मातृभाषा में पढ़ाई से बच्चों की उपस्थिति, भागीदारी और प्रदर्शन में सुधार आया है।”
आगे की योजना
यह पायलट प्रोजेक्ट अभी दो जिलों में चल रहा है और इसे दो वर्षों तक परीक्षण के तौर पर जारी रखा जाएगा। यदि परिणाम सकारात्मक रहे, तो इसे राजस्थान के अन्य जिलों में भी लागू किया जाएगा।
राजस्थान की यह पहल इस बात का संकेत है कि अगर बच्चों को उनकी भाषा में पढ़ने का अधिकार दिया जाए, तो वे न सिर्फ बेहतर सीखते हैं बल्कि आत्मविश्वास के साथ समाज का हिस्सा भी बनते हैं।
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login