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भारत में शिशु कुपोषण से निपटने के लिए WHEELS Global फाउंडेशन की अनूठी पहल

भारत में शिशु कुपोषण की गंभीर समस्या के समाधान के लिए WHEELS Global फाउंडेशन ने मध्य प्रदेश सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सहयोग से न्यू बोर्न न्यूट्रिशनल हेल्थ इनिशिएटिव नाम से एक पहल शुरू की है। इस अभियान का उद्देश्य मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक करोड़ से अधिक माताओं और शिशुओं को लाभ पहुंचाना है।

भारत के मध्य प्रदेश राज्य में न्यूबोर्न न्यूट्रिशनल हेल्थ सॉल्यूशन कार्यक्रम का आयोजन न्यूयार्क में भारत के महावाणिज्य दूतावास द्वारा किया गया। / Image : provided

(रतन अग्रवाल)

भारत में शिशु कुपोषण एक बड़ी चिंता का विषय है। इससे शिशुओं की मृत्यु दर और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019-20) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में पांच साल से कम आयु के 36 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं, 33 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं और 17 प्रतिशत बच्चे कमज़ोर हैं। सर्वेक्षण कहता है कि भारत में छह महीने से कम उम्र के शिशुओं के लिए स्तनपान दर केवल 55.6 प्रतिशत है। स्तनपान के 'सटीक' तरीकों के बारे में जागरूकता लगभग न के बराबर है। इसका परिणाम ये होता है कि शिशुओं को मां के औसत दूध का लगभग 28 फीसदी हिस्सा ही मिल पाता है। ये आंकड़े दिखाते हैं कि तमाम सरकारी अभियानों और कार्यक्रमों के बावजूद भारत में शिशु कुपोषण की चुनौतियों लगातार बनी हुई हैं।

इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए WHEELS ग्लोबल फाउंडेशन ने मध्य प्रदेश सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सहयोग से न्यू बोर्न न्यूट्रिशनल हेल्थ इनिशिएटिव नाम से एक पहल शुरू की है। WHEELS विश्व स्तर पर आईआईटी के पूर्व छात्रों का एक सामाजिक मंच है। सार्वजनिक और निजी भागीदारी वाले इस विशिष्ट अभियान का उद्देश्य मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक करोड़ से अधिक माताओं और शिशुओं को लाभ पहुंचाना है। इस पहल को आरआईएसटी फाउंडेशन से अनुदान भी प्राप्त है।  इस अभियान में तीन राज्यों- महाराष्ट्र, गुजरात और छत्तीसगढ़ के कई जिलों से मिले सबक को भी शामिल किया गया है। 

कुपोषण की समस्या के समाधान के लिए व्हील्स ने नवजात शिशुओं के लिए पोषण के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत - मां से स्तन वाले दूध का उपयोग करने की योजना बनाई है। इसके लिए स्तनपान की कुप्रथाओं की पहचान करने के लिए झुग्गी वाले क्षेत्रों में अमेरिकी बाल रोग विशेषज्ञ डॉ रूपल दलाल द्वारा किए गए शोध और फील्डवर्क और डॉ कन्नन मौदगल्या के नेतृत्व में आईआईटी बॉम्बे की टीम द्वारा हेल्थ स्पोकन ट्यूटोरियल (एचएसटी) के माध्यम से किए गए कार्यों को भी ध्यान में रखा गया है। इसका उद्देश्य किफायती और समयानुकूल स्तनपान तकनीक तैयार करना है। साथ ही फ्रंटलाइन पर काम करने वाले सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए ट्रेनिंग कंटेंट तैयार करके उसे लागू करना है। इसका 10 मिनट का कंटेंट 20 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध है, जिसे ऑफ़लाइन या ऑनलाइन माध्यम से खुद सीखने के मकसद से डिजाइन किया गया है। 

यह समाधान नवजात शिशु के पहले दो वर्षों में विकास को मापने के लिए स्थापित वैज्ञानिक मानकों के अनुरूप है। यह एप्लिकेशन न केवल समाधान की प्रगति और प्रभाव पर नज़र रखता है बल्कि ऐसे वर्कर्स और मांओं की पहचान भी करता है जिन्हें अतिरिक्त प्रशिक्षण या एक्सपर्ट की सलाह की जरूरत होती है। इसमें मौजूदा कार्यक्रमों को भी एकीकृत किया गया है, जैसे कि गर्भवती माताओं को विटामिन व आयरन की आपूर्ति की जाती है, उनका टीकाकरण किया जाता है और प्रक्रियागत व्यवस्थाओं जैसे कि समय-समय पर विजिट करना, डेटा जुटाना और संपर्क बनाए रखने को भी एकीकृत किया गया है।

104 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में स्वास्थ्य क्षेत्र में चुनौतियों की जटिलता और उनकी विशालता को समझना आसान नहीं है। हालांकि तकनीक, इनोवेशन, इम्पैक्ट इकोसिस्टम की ताकत और पब्लिक-प्राइवेट भागीदारी से इस तरह की पहल एक उम्मीद जगाती है कि हम लाखों लोगों के जीवन को संवारने वाला प्रभावी समाधान पेश कर सकते हैं। आईआईटी ब्रांड से समाज और देश ऐसी ही उम्मीद करता है।

मध्य प्रदेश सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मिशन डायरेक्टर प्रियंका दास कहती हैं कि नीतिगत रूप से नवजात शिशु को पहले छह महीनों में स्तनपान कराना अनिवार्य है। हम इस कार्यक्रम को पहले मध्य प्रदेश में सात सबसे चुनौतीपूर्ण जिलों में लागू करने जा रहे हैं। उसके बाद इसे मास्टर ट्रेनर बेंच के जरिए राज्य के बाकी हिस्सों में लागू किया जाएगा। 

PanIIT कम्युनिटी की पहल पर शुरू इस WHEELS मिशन को भारत के सभी 29 राज्यों के अलावा दुनिया के कई अन्य हिस्सों में भी लागू करने की योजना है। उम्मीद है कि इस तकनीकी पहल से सुनिश्चित हो सकेगा कि हर बच्चे का मस्तिष्क पूरी तरह से विकसित हो सके और उसे स्वस्थ जीवन जीन का मौका मिल सके।

(लेखक IITs के पूर्व छात्रों की पहल - व्हील्स ग्लोबल फाउंडेशन के प्रेसिडेंट व बोर्ड मेंबर हैं। उनसे ratan@wheelsglobal.org पर संपर्क किया जा सकता है।  इस लेख में व्यक्त विचार और राय लेखक के अपने हैं। यह जरूरी नहीं है कि वे न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या स्थिति को प्रतिबिंबित करते हों।)

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