भारतीय मूल की डॉक्टर प्रेमिला थम्पी को मिल्टन कीन्स यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट में प्रसूति एवं स्त्री रोग सलाहकार के रूप में प्रैक्टिस करते समय कदाचार का दोषी पाए जाने के बाद मेडिकल प्रैक्टिशनर्स ट्रिब्यूनल सर्विस (MPTS) ने तीन हफ़्ते के लिए निलंबित कर दिया है।
डॉ. थम्पी पर एक मरीज़ को ज़बरदस्ती सीजेरियन डिलीवरी करवाने के लिए मजबूर करने और विकल्पों पर चर्चा न करने का आरोप लगाया गया है।
13 सितंबर, 2024 को शुरू हुई और मार्च 2025 तक चलने वाली सुनवाई के दौरान ट्रिब्यूनल ने कदाचार के कारण डॉ. थम्पी की प्रैक्टिस करने की योग्यता को ख़राब पाया।
डॉ. थम्पी के तीन पूर्व मरीजों से प्राप्त शिकायतों की प्रारंभिक जांच के बाद उनके पेशेवर आचरण को लेकर चिंताओं के कारण जनरल मेडिकल काउंसिल (GMC) ने पहले ही डॉ. थम्पी के मामले को मेडिकल प्रैक्टिशनर्स ट्रिब्यूनल की सुनवाई के लिए भेज दिया था।
MPTS की रिपोर्ट के अनुसार, GMC ने आरोप लगाया था कि डॉ. थम्पी मरीज़ों ए, बी और सी (नाम गुप्त रखने के लिए ऐसा नाम दिया गया है) को उनके बच्चों के जन्म के समय अच्छी चिकित्सीय देखभाल प्रदान करने में विफल रहीं। हालाँकि, मरीज़ बी और सी के मामले में किए गए दावे अपर्याप्त साक्ष्यों के कारण सिद्ध नहीं हो पाए।
न्यायाधिकरण को दिए अपने बयान में, मरीज़ ए ने अब निलंबित डॉक्टर के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए और कहा कि मेरे पैरों को स्टिरअप में डालने की प्रक्रिया के दौरान मैं कह रही थी 'मैं नहीं चाहती कि फोरसेप्स का इस्तेमाल किया जाए और मैंने अभी तक जोर नहीं लगाया है।
यह घटना अक्टूबर 2016 में मिल्टन कीन्स यूनिवर्सिटी अस्पताल में हुई थी। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि डॉ. थम्पी ने मरीज के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया,संदंश का इस्तेमाल किया और अपने फ़ैसले के समर्थन में अपनी वरिष्ठता का हवाला दिया।
न्यायाधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. थम्पी ने ज़बरदस्ती के व्यवहार से इनकार किया और दावा किया कि उन्होंने अपने मरीजों के सर्वोत्तम हित में काम किया। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि वे बेहतर तरीके से संवाद कर सकती थीं और अब उन्होंने अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव किया है।
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