दक्षिण भारत के एक वाइल्डलाइफ पार्क से चार दुर्लभ एशियाई हाथियों को जापान भेजे जाने पर पशु विशेषज्ञों और संरक्षणवादियों ने कड़ी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि इतना लंबा सफर और नई जगह पर भेजना हाथियों की सेहत पर बुरा असर डाल सकता है।
बेंगलुरु के बन्नरघट्टा बायोलॉजिकल पार्क से इन हाथियों को खास क्रेट्स में रखकर एक कार्गो विमान से जापान के ओसाका भेजा गया। करीब 12 घंटे की इस हवाई यात्रा के बाद अब ये हाथी हमेशा के लिए जापान के हीमेजी सेंट्रल पार्क में रहेंगे। इसके बदले भारत को चार चीते, चार जैगुआर, चार प्यूमा, तीन चिम्पैंजी और आठ ब्लैक कैप्ड कैपुचिन बंदर मिलेंगे। यह जानकारी न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में दी गई है।
हाथियों के 'एक्सचेंज' पर नाराज
वन्यजीव विशेषज्ञ रवि चेल्लम ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि वाइल्डलाइफ पार्कों में केवल स्थानीय प्रजातियों के ही जानवरों को रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हाथी जापान के लिए स्वदेशी प्रजाति नहीं हैं और ना ही चीते और जैगुआर कर्नाटक के लिए। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इस अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज प्रोग्राम का मकसद क्या है।”
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विश्व प्रकृति निधि (WWF) के मुताबिक, जंगलों में केवल 50,000 से भी कम एशियाई हाथी बचे हैं, जिनमें से अधिकतर भारत में पाए जाते हैं।
पहले भी हुआ है इंटरनेशनल ट्रांसफर, पर सवाल कायम
2022 में भारत ने नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कुल 20 चीते मंगवाए थे, ताकि 70 साल बाद भारत में एक बार फिर से इस प्रजाति को बसाया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, लेकिन कई चीतों की मौत के बाद इस पर भी सवाल उठे थे।
चेल्लम ने कहा कि जानवरों को केवल ‘दिखाने’ के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। “आज के समय के चिड़ियाघर के चार मकसद होने चाहिए – शिक्षा, संरक्षण, अनुसंधान और मनोरंजन। जानवरों का चयन भी इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर होना चाहिए।”
पेंटा और विशेषज्ञों की आपत्ति
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इन हाथियों को छह महीने तक ट्रेन्ड किया गया। हर दिन उन्हें तीन-चार घंटे के लिए क्रेट्स में रखा जाता था ताकि वे सफर की परिस्थिति के लिए तैयार हो सकें। हालांकि, PETA (पशुओं के नैतिक व्यवहार के लिए लोग) का कहना है कि हाथियों के लिए प्लेन के कार्गो होल्ड में सफर करना बेहद डरावना और तनावपूर्ण अनुभव रहा होगा।
PETA इंडिया के सचिन बांगेरा ने कहा, “देशों के बीच जानवरों को केवल प्रदर्शन के लिए भेजने में जो खर्च होता है, उसकी बजाय उसी राशि से जंगलों की रक्षा की जा सकती है और जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में ही सुरक्षित रखा जा सकता है।” हालांकि, भारतीय चिड़ियाघरों में इंटरनेशनल एनिमल एक्सचेंज प्रोग्राम बहुत आम नहीं है, लेकिन कभी-कभार इस तरह के सौदे होते रहे हैं।
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