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अब दिग्गज एयर कंडीशनिंग कंपनी कैरियर करेगी भारत पर मुकदमा

मोदी सरकार ने सितम्बर में एक न्यूनतम मूल्य तय किया था जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को रीसाइकिलर्स को देना होगा। इसके बारे में निर्माताओं का तर्क है कि यह उनके द्वारा पहले दी गई राशि से लगभग तीन से चार गुना अधिक है।

9 अप्रैल, 2025 को नई दिल्ली, भारत में एक गर्म दिन एक व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक्स स्टोर के अंदर प्रदर्शित एयर कंडीशनर देखता हुआ। / Reuters/Adnan Abidi

अमेरिका की एयर कंडीशनिंग दिग्गज कैरियर कंपनी की भारतीय इकाई इलेक्ट्रॉनिक कचरा नियमों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर मुकदमा करने वाली नवीनतम प्रमुख फर्म बन गई है। कंपनी का कहना है कि निर्माताओं द्वारा रीसाइकिल करने वालों को दिए जाने वाले शुल्क में कई गुना वृद्धि की गई है।

दक्षिण कोरिया की सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स और एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ-साथ जापान की डाइकिन और टाटा की वोल्टास ने भी मुकदमा दायर किया है, जिसकी सुनवाई 8 जुलाई को दिल्ली उच्च न्यायालय में होनी है। सभी कंपनियां नियमों को रद्द करने की मांग कर रही हैं।

भारत चीन और अमेरिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पादक है, लेकिन सरकार का कहना है कि पिछले साल देश के केवल 43 प्रतिशत ई-कचरे का ही पुनर्चक्रण किया गया था।

मोदी सरकार ने सितंबर में एक न्यूनतम मूल्य तय किया था जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को रीसाइकिलर्स को देना होगा। इसके बारे में निर्माताओं का तर्क है कि यह पहले दिए गए भुगतान से लगभग तीन से चार गुना अधिक है।

3 जून को दायर 380 पन्नों की अदालती फाइलिंग में, जिसे सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं किया गया है, कैरियर ने कहा कि रीसाइकिलर्स पुरानी कीमतों पर अपना काम जारी रखने के लिए तैयार हैं और सरकार को कंपनियों और रीसाइकिलर्स के बीच निजी लेन-देन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

रीसाइकिलर्स को दिए जा रहे लाभ का बोझ उत्पादकों पर डाला गया है, जो अनुचित और मनमाना है। कैरियर एयरकंडिशनिंग एंड रेफ्रिजरेशन द्वारा प्रस्तुत किए गए सबमिशन में ऐसा कहा गया है, जिसकी रॉयटर्स द्वारा समीक्षा की गई।

प्रस्तुतियों में यह भी कहा गया है कि इन नियमों के कारण कंपनी पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा। कैरियर ने टिप्पणी के लिए रॉयटर्स के अनुरोध का जवाब नहीं दिया। भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने भी रॉयटर्स के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया।

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