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जंगल में महिलाओं पर नजर रखने के लिए तकनीक का इस तरह से होता है गलत इस्तेमाल

स्टडी में एक स्थानीय महिला के हवाले से कहा गया है, 'हम कैमरों के सामने नहीं चल सकतीं या घुटनों से ऊपर तक के कुर्ती पहनकर उस इलाके में नहीं बैठ सकतीं। हमें डर है कि हमारी गलत तस्वीरें या वीडियो बन सकती हैं।'

Stock image / Reuters

जंगली जानवरों, जैसे बाघ और हाथी पर नजर रखने के लिए इस्तेमाल होने वाले कैमरा ट्रैप्स, ड्रोंस और अन्य तकनीक का इस्तेमाल भारत में औरतों को डराने, परेशान करने और यहां तक कि उन पर जासूसी करने के लिए किया जा रहा है। 22 नवंबर को रिसर्चर्स त्रिशांत सिमलाई ने बताया कि एक बहुत ही गंभीर मामले में एक महिला की जंगल में जरूरतें पूरी करती हुई फोटो लोगों ने सोशल मीडिया पर डाल दी। इससे नाराज गांव वालों ने आस-पास के कैमरा ट्रैप्स तोड़ दिए। ये एक बहुत ही गंभीर मामला है।

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, UK के रिसर्चर त्रिशांत सिमलाई ने उत्तरी भारत के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के आसपास रहने वाले लगभग 270 लोगों से 14 महीने तक बातचीत की। सिमलाई ने एएफपी को बताया कि रिजर्व के आसपास के गांवों में रहने वाली महिलाओं के लिए जंगल एक 'कंजर्वेटिव और पितृसत्तात्मक समाज' से दूर, आजादी और अभिव्यक्ति की जगह रहा है। महिलाएं जंगल से लकड़ी और घास इकट्ठा करते वक्त गाती हैं। सेक्स जैसे मसले पर बात करती हैं। कभी-कभी शराब और सिगरेट भी पीती हैं। 

लेकिन सिमलाई ने बताया कि बाघ और दूसरे वाइल्डलाइफ को ट्रैक और प्रोटेक्ट करने की कोशिशों के तहत लगाए गए कैमरा ट्रैप्स, ड्रोंस और साउंड रिकॉर्डर्स लगाने से 'समाज की पुरुषवादी नजर' जंगल तक पहुंच गई है। सिमलाई के नेतृत्व में एन्वायरनमेंट एंड प्लानिंग जर्नल में छपे एक स्टडी के मुताबिक, कई बार ड्रोंस जानबूझकर महिलाओं के सिर के ऊपर उड़ाए गए, जिससे उन्हें अपनी लकड़ी गिराकर छिपने के लिए भागना पड़ा। 

स्टडी में एक स्थानीय महिला के हवाले से कहा गया है, 'हम कैमरों के सामने नहीं चल सकतीं या घुटनों से ऊपर तक के कुर्ती पहनकर उस इलाके में नहीं बैठ सकतीं। हमें डर है कि हमारी गलत तस्वीरें या वीडियो बन सकती हैं।' एक फॉरेस्ट रेंजर ने रिसर्चर्स को बताया कि जब एक कैमरा ट्रैप ने जंगल में रोमांस करते हुए एक कपल की फोटो खींची, तो हमने तुरंत पुलिस को रिपोर्ट कर दी। 2017 में एक कैमरा ट्रैप ने एक हाशिये पर रहने वाली जाति की ऑटिस्टिक महिला की जंगल में अपनी जरूरतें पूरी करती हुई फोटो गलती से खींच ली। 

सिमलाई ने बताया कि अस्थायी वन कर्मचारियों के तौर पर नियुक्त युवा पुरुषों ने महिला को शर्मसार करने के लिए ये फोटो लोकल व्हाट्सएप और फेसबुक ग्रुप्स पर शेयर कर दी। स्थानीय ने शोधकर्ताओं को बताया, 'हमारे गांव की बेटी के साथ इस तरह से बेइज्जती हुई, इसलिए हमने जितने भी कैमरा ट्रैप मिले, सब तोड़ दिए और आग लगा दी। 

उन्होंने बताया कि कैमरों से बचने के लिए कुछ महिलाएं जंगल के और अंदरूनी हिस्सों में जाने लगी हैं, जहां बाघों की सबसे ज्यादा संख्या है। महिलाएं पहले जितना नहीं गातीं, जबकि गाना जानवरों के हमले से बचाता था। सिमलाई ने बताया कि एक स्थानीय महिला - जिसने 2019 में कैमरों के डर से उसे अनजान जगहों पर जाने के लिए मजबूर करने की बात कही थी - इस साल की शुरुआत में बाघ के हमले में मारी गई। 

वहीं, एक महिला ने लगातार इस निगरानी का फायदा उठाया। सिमलाई ने बताया, 'जब भी उसका पति उसे मारता था, वह कैमरे के सामने भाग जाती ताकि उसका पति उसका पीछा न कर सके।' सिमलाई ने जोर देकर कहा कि कुल मिलाकर ये टेक्नोलॉजी वास्तव में बहुत अच्छी हैं और संरक्षण के प्रयासों में क्रांति ला रही हैं। लेकिन उन्होंने स्थानीय समुदायों के साथ तकनीक के बारे में अधिक विचार-विमर्श, वन अधिकारियों से अधिक पारदर्शिता और निगरानी और स्थानीय कर्मचारियों के लिए संवेदनशील प्रशिक्षण की मांग की।

यूके की शेफील्ड यूनिवर्सिटी में विशेषज्ञ रोसेलीन डफी ने एएफपी को बताया कि दुख की बात है कि उन्हें इस शोध से आश्चर्य नहीं हुआ। उन्होंने कहा, मुझे आश्चर्य इस बात से है कि हम कल्पना करते हैं कि तकनीकों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक निर्वात में पेश और उपयोग किया जा सकता है। डफी ने बताया, इस शोध में दिए गए मामले आकस्मिक नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि जबकि यह तकनीक वन्यजीवों के संरक्षण के लिए एक शक्तिशाली उपकरण हो सकती हैं इसके उपयोग और अनुपयोग के लिए स्पष्ट नियम होने चाहिए। इसका दुरुपयोग करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए स्पष्ट परिणाम होने चाहिए।

 

 

 

 

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