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संघर्ष और सेतु

भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल का तो यहां तक कहना है कि अगर आज जैसा माहौल तब होता तो शायद वो अमेरिका की नागरिक कभी बन ही नहीं पातीं।

सांकेतिक तस्वीर / CANVA

बीते एक-डेढ़ दशक में अमेरिका और भारत कई स्तरों पर एक-दूसरे के करीब आए हैं। समाज से लेकर सियासत तक राहें मजबूत हुई हैं। शिक्षा, चिकित्सा और कारोबार में जड़ें जमी हैं। अगर इस नजदीकी की श्रेय दोनों देशों के सत्ता प्रतिष्ठान को जाता है तो संबंधों की नींव को खाद-पानी देकर उसे ठोस बनाने का काम समुदाय ने किया है। यह समुदाय भारतीय तो है ही अमेरिकी भी है। कुछ भारतीय यहां आए और अपने संघर्ष के साथ वैधानिक राह पकड़कर अमेरिका के नागरिक बन गए। हमेशा से एक यहां का स्थानीय समुदाय रहा जिसने दूसरी धरती से आए लोगों को अपने साथ जोड़ा। लेकिन तारीफ उस समुदाय की भी कम नहीं जो दूसरी धरती से आया और अपनाई हुई धरा को अपना मानकर अपने साथ-साथ उसकी तरक्की में भी जुट गया। इसलिए, सुदूर बेशक संबंधों के जो किनारे मिले दिखते हैं उसमें समुदाय एक मजबूत सेतु की तरह खड़ा है। इसीलिए भारत से कोई भी नेता या सामाजिक नायक यहां आता है तो इस 'मिले-जुले माहौल और गर्मजोशी से भरे अपनेपन' के लिए समुदाय का श्रेय देता है। अमेरिका में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा ने एक बार फिर समुदाय को कुछ इसीलिए याद किया है। कैपिटल हिल में आयोजित अमेरिका-भारत साझेदारी शिखर सम्मेलन के दौरान राजदूत क्वात्रा ने अमेरिका में भारतीयों की बढ़ती भागीदारी की प्रशंसा करते हुए उन्हें 'सबसे मूल्यवान संरक्षकों में से एक' बताया। क्वात्रा ने इस बात पर जोर दिया कि भारत-अमेरिका साझेदारी 'मूल रूप से पीढ़ियों से पोषित साझा मूल्यों में निहित है।' बकौल क्वात्रा प्रवासी भारतीय भारत-अमेरिका साझेदारी के लिए जीवंत सेतु हैं।

यहां तक की कहानी तो हर उस भारतीय को समझ आती है जो अमेरिका आकार अपने सपने को साकार करने का ख्वाब देखता रहा है। साकार भी करता रहा है। अवसरों की इस धरती पर उसने ऊंचाइयां भी हासिल की हैं, जो पूरी दुनिया के सामने हैं और आज के सियासी-सत्ता प्रतिष्ठान में भी परिलक्षित होती हैं। लेकिन इधर, खासकर इस साल के छह-साढ़े छह महीने में जब से डोनल्ड ट्रम्प दूसरी बार सत्ता में आए हैं, अमेरिका के हालात द्रुत गति से बदले हैं। नीतियां बदली हैं। उन बदली हुई नीतियों का असर दिखने लगा है। और लगने लगा है कि वह सपना जो अक्सर भारतीय देखा करते थे, देखते आए हैं और देख रहे हैं उसे पूरा करना अब आसान नहीं रह गया है। आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। सरकारी आंकड़ों से ही पता चलता है कि मार्च से मई 2025 के बीच भारतीय छात्रों को मिलने वाले F-1 स्टूडेंट वीजा में 27 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। पर्यटन, शिक्षण या यहां आकर काम करने वाले भारतीय नागरिकों को भी जल्द ही वीजा संबंधी लागतों में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा। साल 2026 से 'वन बिग ब्यूटीफुल बिल' के तहत अधिकांश गैर-आप्रवासी वीजा कैटेगरी पर 250 डॉलर का एक नया 'वीजा इंटीग्रिटी चार्ज' लगाया जाएगा। इस पर 4 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर चुके हैं। अब यह कानून है। यानी सपनों को पूरा करने वाला संघर्ष बढ़ गया है। लगातार सख्ती इस संघर्ष को और बढ़ा सकती है या सुनहरी धरती से मोहभंग भी करा सकती है। हालात का अंदाजा भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल के आह्वान से लगाया जा सकता है। अपने नागरिक बनने की 17 साल लंबी यात्रा को याद करते हुए जयपाल ने अमेरिका की वैध इमिग्रेशन व्यवस्था को बचाए रखने की अपील की है। उनका कहना है कि अगर आज जैसा माहौल तब होता तो शायद वो अमेरिका की नागरिक कभी बन ही नहीं पातीं। 

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